'हे वादियां, कभी हमारी याद आती भी है क्या?'
हे वादियां, तुमसे में पूछता हूं,
"कभी हमारी याद आती भी है क्या?"
वो अनगिनत शरारतें,
बचकानी आदतें
तुम्हारे आंगन में बिताये वो हसीन लम्हें,
बीते कल के मज़ाक और बातें
दोस्तों से घिरी कहानियां है बुने,
खतरों से भरी हमारी दास्तानें
हे वादियां, तुम्हे याद आती है क्या?
मां के आँचल सी तुम्हारी हिफाज़त,
ठंडी में गर्माहट सी तुम्हारी मोहब्बत
तुम्हारी कलाई पे अपने नाम खुदवाने की वो इजाज़त,
सपने देखने की तुम्हारी वो सिखावत
हे वादियां, तुम्हे याद आती है क्या?
रोज़ सोचता हूं रास्ते तुम तक पहुंचने की,
हर मंजिल पार कर तुम्हे देखने की
उन हसीन यादों को फिर से ताज़ा करने की
और फिरसे तुम्हे पूछने की,
"हे वादियां,
कभी हमारी याद आती भी है क्या?"
Comments
Post a Comment