'मोहब्बत की जुर्रत'

अजी जनाब, ये स्कूल की उन दिनों की बात होगी
जब हम भी किसी से मोहब्बत करने की जुर्रत करते थे
उनकी एक हँसी की झलक के लिए तरसा करते थे
फूलों की गुलदस्ता उनके लिए भेजा करते थे

वो क्लास में आती तो खुशी की लहर छा जाती थी
हर सवाल के उत्तर ढूंढ ढूंढकर दिया करते थे
यहां तक की मेरे दोस्त हैरान होके यह बोलने लगे
कि ये तो आइंस्टीन के अम्मा से ट्यूशन लिया करता है

उसकी एक इशारे पे मरा करते थे
उनके याद में कविताएं डेस्कों पे लिखा करते थे
हर पन्ने पे उनके नाम का टैटू बनाया करते थे
यहां तक की, एग्जाम के शुरुवात भी उन्हीं के नाम से किया करते थे

फिर कहानी में एक ऐसी दिन भी आइ
जब वो स्कूल और हमें, दोनों को छोड़ कर चली गयी
हमारे आंखों से आसू की ऐसी भोचार हुई
कि हमने स्कूल ही छोड़ने तक की भी फैसला लेली

हमारे दोस्त हमें समझाने लगे कि
एक शीला के लिए दस मुन्नी तो हमेशा रेहेती है
पर इस मजनू की लैला तो गहरी चाप छोड़ चुकी थी
हमारे दिल को पूरी तरह से घायल कर चुकी थी

फिर एक दिन हमें यकीन हुआ कि
शायद दिल तो हमेशा से बच्चा ही था जी
सड़कों पे उनकी राह ढूंढते ढूंढते
इत्तेफाक से जा उलझे किसी के जुल्फीले बालों में

उस दिन के टक्कर के बाद तो
अचरज की बात यह हुई की
जिन आदतों ने हमसे मूह मोड़ा था
उनकी पक्की साथ फिर से मिलने लगी

देखते देखते हमसे कविता की बारिश होने लगी
शायराना अंदाज़ तो हर लफ्ज़ ने तपकने लगी
हसीन चेहरे से जुल्फीले बालों तक
प्यार की भोचार तो उनकी परछाई से भी होने लगी

हां , ये सच में स्कूल की उन दिनों की बात होगी
जब हम भी किसी से मोहब्बत करने की जुर्रत करते थे
उनकी जुल्फीले बालों पे लट्टू हुआ थे
फूलों की गुलदस्ता उनके लिए भेजा करते थे

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